ये बंगाल नहीं आसान एक आग का दरिया है ,,,
( ग्राउंड रिपोर्ट )

भोपाल में सुबह साढे दस का वक्त। शहर में नये बने अटल पथ का वो कोना जो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिह चौहान के उस संकल्प को समर्पित है कि वो पूरे साल रोज एक पौधा लगायेंगे। दमोह जाने से पहले शिवराज यहां आते हैं पौधे को तैयार गढढे में उतारते हैं, फावडे से मिटटी गिराते हैं फब्बारे से पानी देते हैं और हाथ पोंछ कर खडे होते ही हैं कि अब तक संतुलित खडे मीडियाकर्मी अचानक उनके पास कैमरे और माइक लेकर सामने खडे हो जाते है। मुख्यमंत्री जी आज शाम बंगाल जाने वाले हैं बीजेपी का प्रचार करने के लिये। वो दावा करते हैं कि पश्चिम बंगाल में अब जनता परिवर्तन चाहती है इसलिये रविवार को होने वाली परिवर्तन रैली में मैं शामिल होने बंगाल जा रहा हूं।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से तकरीबन डेढ हजार किलोमीटर दूर खडे होकर शिवराज सिहं चौहान का ये बयान पालिटिकल करेक्ट हो सकता है क्योंकि वो अपनी पार्टी के पक्के कार्यकर्ता है। मगर बंगाल की राजनीति की गहराई को जानने के लिये हमें चुनावी आंकडों ओर राजनीतिक इतिहास को खंगालना पडेगा। वैसे भी पश्चिम बंगाल क्रांतिकारियों और भद्र लोगों का राज्य है। जहां पर विरोध, संघर्ष और हिंसा की राजनीति का इतिहास दूसरे राज्यों से हटकर रहा है। पश्चिम बंगाल में पहले कांग्रेस बीस साल, फिर सीपीआई पैंतीस साल और अब टीएमसी दस साल से सत्ता में है। इशारा साफ है यहां सत्ता आसानी से नहीं बदलती जब तक कि जनता बदलाव का मन ना बना ले। तेइस जिलों वाले इस विशाल राज्य में साढे आठ करोड के करीब वोटर हैं। एक बात और बंगाल को बाकी राज्यों से अलग करती है वो ये कि यहां के वोटर जब वोट डालने निकलते हैं तो हिंसा के अलावा वोट प्रतिशत का इतिहास रचते हैं। पिछले तीन चुनावों से यहां पर वोटर अस्सी फीसदी से ज्यादा मतदान कर रहे हैं। पिछले दो चुनावों में यहां महिला वोटिंग का प्रतिशत कुल प्रतिशत से ज्यादा रहा। 2011 में महिला वोटर साढे 84 फीसदी थीं तो 2016 में 83 फीसदी महिला वोटरों ने वोट किया। इन दोनों चुनावों में महिला वोटरों के इस बढे हुये प्रतिशत ने ही ममता दीदी की सरकार बनवायी। ये साफ दिख रहा है। 2011 में ममता के पास 39 फीसदी वोट के साथ 184 सीटें थीं तो 2016 में ये सीटें बढकर हो गयीं 211 और वोटों का प्रतिशत बढकर पहुंचा 45। द पालिटिक्स डाट इन के विकास जैन बताते हैं कि बंगाल की महिला वोटर अपने जैसे सीधे सादे पहनावे वाली अपनी दीदी पर जान छिडकती है। इस वोटर को बीजेपी कैसे तोडेगी ये पार्टी के सामने बडा सवाल होगा। क्योंकि बंगाल में चुनरी यात्रा या साडी बांटने से काम नहीं चलेगा। विधानसभा की कुल 294 सीटों में से ममता की टीएमसी का दौ से ज्यादा सीटों पर कब्जा है। इसमें से कुछ विधायकों के इधर उधर चले जाने से पार्टी को कुछ बहुत फर्क नहीं पडेगा क्योंकि चुनाव के पहले विधायकों का इधर उधर जाना अब रस्म हो गयी है। जिस विधायक को अपना टिकट खतरे में दिखता है वो दूसरी पार्टी की चुनावी गाडी में बैठ जाता है। बंगाल में टीएमसी के बाद पिछले दो चुनाव में नंबर दो की पार्टी कांग्रेस रही है जिसकी 44 और 42 सीटें रहीं हैं। नंबर एक और नंबर दो पार्टी का फर्क देख लीजिये फिर कुछ अनुमान लगाइयेगा।
पश्चिम बंगाल में जिस विधायक के दल बदलने पर सबसे ज्यादा चर्चा हुयी वो रहे सुधेंदु अधिकारी। सुवेंदु ममता सरकार में परिवहन मंत्री रहे और वो मिदनापुर जिले के नंदीग्राम सीट से आते हैं। इस सीट का इतिहास बडा जबरर्दस्त है। अंग्रेजों के राज में मिदनापुर जिसे पहले मेदनीपुर कहा जाता था बंगाल का सबसे बडा जिला रहा है। इसी के दो ब्लाक हैं नंदीग्राम और तमलुक। ये इलाका हुगली, हल्दी ओर बंगाल की खाडी के किनारे बसा है। 2006 में नंदीग्राम की बीस हजार एकड जमीन कैमिकल हब के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र सेज के लिये अधिग्रहित की गयी। जिस पर यहां के किसानों ने उस वक्त की वामपंथी सरकार के खिलाफ ग्यारह महीने तक लंबा संघर्ष किया। जमकर खून खराबा हुआ इतना कि पश्चिम बंगाल के गृह सचिव ने नंदीग्राम को युद्व क्षेत्र घोषित कर मीडिया के वहां जाने पर पाबंदी लगा दी थी। इस खून खराबे का असर कोलकाता की सडकों पर भी दिखा। नंदीग्राम के गरीब किसानों के पक्ष में बंगाल के भद्र लोक ने नारे लगाये आमार ग्राम तोमार ग्राम नंदीग्राम नंदीग्राम। तबके वामपंथी मुख्यमंत्री बुद्वदेव को लोगों ने बुद्वूदेव और बंदूक देव तक कहा और उसी का असर रहा कि पैंतीस साल शासन करने के बाद वामपंथी सरकार का अंत 2011 में हो गया। इतिहास गवाह है कि इसी नंदीग्राम में अंग्रेज सरकार का पहला कलेक्टर और दरोगा को जनता ने मार डाला था। जिस जगह की जनता ने तीन अंग्रेज कलेक्टरों को मारा हो वहां की जनता किस कदर धधकती होगी। और यहीं से विधायक टीएमसी के विधायक रहे हैं सुवेदु अधिकारी जिनके पिता शिशिर अधिकारी ने नंदीग्राम आंदोलन में बडी भूमिका निभाई थी। सुवेंदु के बीजेपी में जाते ही गममता ने यहीं से अगला चुनाव लडने की बात कर इस धधकते इलाके की राजनीति को और हवा दे दी है। ममता ने पिछला चुनाव भवानी पुर से जीता था मगर ममता पीछे हटने नहीं बल्कि आगे बढकर राजनीति करने वाली नेता रहीं हैं अब देखना है कि आठ चरणों में होने वाले चुनाव, केंद्रीय बलों की बडी मौजूदगी, अमित शाह की रणनीति और बीजेपी के देश भर के चुनावी रणनीतिकार जब बंगाल आयेंगे तो कितना कुछ कर पायेंगे। बीजेपी इस बार बंगाल में हिंदू मुसलमानों का धु्रवीकरण और जय श्रीराम के नारे के सहारा टीएमसी की मां माटी मानुष के नारे को चोट पहुंचाने की सोचकर बैठी है देखना है क्या होता है। वैसे आंकडों के आधार पर तो बीजेपी की जीत दूर की कौडी लग रही है।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज,
भोपाल

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