महिलाओ के लिए विशेष कानूनी अधिकार

आज महिलाएं पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलकार काम कर रही हैं। घर हो या बाहर हर जगह उनका दबदबा नजर आता है। पर, उसी समाज में महिला उत्पीड़न, स्त्री द्वेष, महिलाओं का मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, लिंग भेद जैसी चीजें भी हो रही हैं और बहुत सी महिलाओं के लिए ये सब उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। पर, अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो इन बाधाओं को पार करना ही होगा। भारतीय संविधान में महिलाओं की सुरक्षा और समानता से जुड़े कई कानून बनाए गए हैं, जो महिलाओं को सशक्त बनाते हैं। तो चलिए इस सम्वन्ध में जिला एवं सत्र न्यायालय के अधिवक्ता आमिर उल्ला खान से जानिए ऐसे ही कुछ भारतीय कानूनों के बारें में जिनकी जानकारी हर महिला को भी होनी चाहिए।
समान वेतन का अधिकार
समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार हर महिला का हक है।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (घ) में पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता।
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम2005
ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है। अगर किसी महिला के साथ घरेलू हिंसा जैसा अपराध हो रहा है तो वो खुद या उसकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।
मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार
मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है। मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) से बढ़ाकर 26 सप्ताह तक कर दिया गया है। 12 सप्ताह के लिए महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती है। संविधान के अनुच्छेद 42 में महिलाओं हेतु प्रसूति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था दी गई है तथा संविधान के अनुच्छेद 47 में पोषाहार, जीवन स्तर एवं लोक स्वास्थ्य में सुधार करना सरकार का दायित्व है, ऐसी व्यवस्था संविधान में रखी गई है।
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार
दुष्कर्म की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है। स्टेशन हाउस ऑफिसर(SHO) के लिए ये जरूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण(Legal Services Authority) को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे।
संपत्ति पर अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है।
काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार
काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है। उच्चतम न्यायालय का ”विशाखा बनाम राजस्थान राज्य ए.आई.आर. 1997 एस.सी.सी.3011” का निर्णय विशेष महत्व रखता है। इस केस में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने महिलाओं के प्रति काम के स्थान में होने वाले यौन उत्पीडन को रोकने के लिए विस्तृत मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये हैं। न्यायालय ने कहा यह भी कहा है कि ”किसी वृत्ति, व्यापार या पेशा के चलाने के लिए सुरक्षित काम का वातावरण होना चाहिए
यौन उत्पीडन पर अभिव्यक्त रोक लगाना जिसमे निम्न बातें शामिल हैं – शारीरिक सम्बन्ध और प्रस्ताव,उसके लिए आगे बढ़ना, यौन सम्बन्ध के लिए मांग या प्रार्थना करना, यौन सम्बन्धी छींटाकशी करना, अश्लील साहित्य या कोई अन्य शारीरिक मौखिक या यौन सम्बन्धी मौन आचरण को दिखाना ये सभी भारतीय दण्ड संहिता की भिन्न भिन्न धाराओ में दण्डनीय अपराध है।
गिरफ्तार के सम्वन्ध में अधिकार
सीआरपीसी की धारा 46 के मुताबिक महिला को सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार करेगी. किसी भी महिला को पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं करेगा जहां तक महिलाओं की गिरफ्तारी का संबंध है तो सीआरपीसी की धारा 46(4) कहती है कि किसी भी महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज निकलने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है हालांकि अगर किसी परिस्थिति में किसी महिला को गिरफ्तार करना ही पड़ता है तो इसके पहले एरिया मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी.
महिलाओ के लिए विशेष आरक्षण
संविधान अनुच्छेद 40 में पंचायती राज्य संस्थाओं में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से आरक्षण की व्यवस्था,की गई है अनुच्छेद 33 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था,तथा अनुच्छेद 332 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है।
दहेज पर प्रतिबंध
दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में ‘दहेज निषेध अधिनियम’ बनाकर क्रियान्वित किया गया। वर्ष 1986 में इसे भी संशोधित कर समयानुकूल बनाया गया।
पीड़ित महिला के साथ व्यवहार
महिला पीड़िता की FIR पर महिला अधिकारी के माध्यम से सुनवाई की जाएगी। महिला अपराध की विवेचना सम्भवता महिला अधिकारी करेगी।महिला अभियुक्तता की अभिरक्षा के दौरान महिला कर्मचारी सुरक्षा में लगेगी।महिला पीड़िता को बार बार थाने नही बुलाया जाएगा।पीड़िता के फोटो नाम पता आदि का प्रचार प्रसार नही किया जाएगा जो IPC की धराव228 a में दण्डनीय है।
आमिर उल्ला खांन
विधिक सलाहकार/एडवोकेट
9993690464

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