ताले में कैद आदिवासी रानी कमलापति का गिन्नौरगढ़ किला

स्टेशन संवारा, किले को संवारने में एमपी सरकार को परहेज

सीहोर. मध्यप्रदेश के आदिवासी वोटरों को साधने के लिए आज से ठीक एक साल पहले एमपी की शिवराज सरकार ने राजधानी स्थित भोपाल के हबीब गंज स्टेशन का नामकरण किया था. इसका नाम हबीबगंज से बदलकर आदिवासी गोंड रानी कमलापति के नाम पर रखा गया था. बकायादा इस स्टेशन का नवनिर्माण देखने काबिल है. रानी कमलापति स्टेशन का लोकार्पण करने के लिए एक साल पहले 15 नवंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आए थे. लेकिन विडम्बना यह है कि रानी कमलापति के नाम से भोपाल के स्टेशन को तो संवार दिया, लेकिन जहां रानी कमलापति का महल था वह आज भी खंडहर में तब्दील होकर ताले में कैद है.
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की विधानसभा के रेहटी क्षेत्र में यह गिन्नौरगढ़ का किला है. यह आदिवासियों की आस्था का केन्द्र है. अपनी आस्था से जुड़े इस किले में आदिवासी समाज के लोग हर अमावस्या और पूनम को यहां आते थे. लेकिन शासन द्वारा इस किले की तालाबंदी कर दी गई और आदिवासियों को इसमें जाने से रोक दिया गया. जिससे आदिवासियों की आस्था को ठेस पहुंची है.
13वीं सदी में गोंड राजा उदय वर्धन ने कराया था निर्माण
इतिहास बताता है कि गिन्नौरगढ़ के किले का निर्माण 13वीं सदी में गोंड राजा उदय वर्धन ने कराया था. गोंड साम्राज्य सीहोर जिले के गिन्नौरगढ़ से लेकर वर्तमान भोपाल एवं होशंगाबाद तक के क्षेत्र में माना जाता है. इस रियासत की अंतिम उत्तराधिकारी शासक के रूप में रानी कमलापति ही रही हैं. बताया जाता है कि गिन्नौरगढ़ के किले से भोजपुर के शिव मंदिर तक एक सुरंग भी बनी है, जिसके द्वारा रानी कमलापति भगवान शिव का हर सोमवार को अभिषेक करने जाती थी.
गिन्नौरगढ़ की भव्यता
गिन्नौरगढ़ के किले में सुंदर बावड़ी, इत्रदान और बादल महल नाम भव्य इमारते हैं. इतिहासकार बताते हैं कि इस किले के नीचे एक गुफा है और इसी गुफा में ठंडे पानी का एक जलाशय है. गिन्नौरगढ़ का किले को यदि हम तीन भागों में बांटकर देखे तो प्रथम भाग तीन मील दूर तक का है जो घेराबंदी के नाम से जाना जाता है. दूसरा भाग दो मी दूर है जहां सदियों पूर्व आबादी क्षेत्र था और तीसरा भाग स्वयं गिन्नौरगढ़ का किला है. इस किले के मुख्य द्वार के समीप एक बहुत ही भव्य महल बना हुआ है जिसे रानी महल के नाम से जाना जाता है.

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