कल मध्यप्रदेश में लोकतंत्र की बरसी मनाए जाने का दिन है। एक साल पहले 20 मार्च को ही मध्यप्रदेश में विधायकों के हृदय परिवर्तन (……….?) द्वारा सत्ता परिवर्तन का उदाहरण सामने आया था। एक साल पहले इसी समय जब पूरा देश कोरोना के डर से लाक डाउन की प्रतीक्षा कर रहा था, तब मध्यप्रदेश में अपनी सरकार बना लेने की प्रतीक्षा देश की सरकार कर रही थी, कि कब वहाँ अपनी सरकार बने और कब लॉक डाउन लगाया जाए। जब एक प्रदेश को अपने स्वास्थ्य मंत्री की सबसे ज़्यादा आवश्यकता थी, तब वही हृदय परिवर्तित स्वास्थ्य मंत्री दूर अपने नए दल की सरकार वाले प्रदेश में किसी रिज़ार्ट में छिपा हुआ था। कमलनाथ गए और शिवराज लगभग चौदह महीनों का वनवास काट कर वापस आ गए। कमलनाथ अपनी ग़लतियों से गए और शिवराज अपनी क़िस्मत से आए। कमलनथ कार्य में शिवराज से बेहतर किन्तु राजनीति में शिवराज से बहुत बदतर साबित हुए। कमलनाथ राष्ट्रीय स्तर के नेता थे और मुख्यमंत्री बन कर भी वे वही बने रहे। विधायक तो क्या उनके मंत्रियों तक को उनसे मिलने के लिए अपाइंटमेंट लेना पड़ता था। शिवराज इस मामले में कमलनाथ से बहुत बेहतर हैं। उधर ज्योतिरादित्य ने जाने से पहले बहुत प्रतीक्षा की। कमलनाथ मुख्यमंत्री बन जाने के बाद प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं छोड़ पाए। मार्च के पहले सप्ताह में ज्योतिरादित्य को प्रदेश अध्यक्ष बना देने का जो आदेश दिल्ली हाइकमान के यहाँ से सात मार्च को चला वह भोपाल में आकर ठंडे बस्ते में चला गया। नहीं जाता तो शायद सरकार बची रहती। कमलनाथ एक प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी वही राष्ट्रीय नेता बने रहे, दिल्ली में जिसके घर के बाहर कांग्रेस के मुख्यमंत्री तक मिलने की प्रतीक्षा करते थे।
भाई ब्रजेश राजपूत ने बहुत अच्छे से इस किताब में उन सत्रह दिनों का ब्यौरा दिया है। पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि एक लेखक के रूप में। उन सत्रह दिनों का ऐसा आँखों देखा हाल प्रस्तुत किया है कि इसे पढ़कर हमें भी ऐसा लगता है जैसे कि हम भी वहीं हैं। कांग्रेसियों को यह किताब अवश्य पढ़ना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें पता चलेगा कि ग़लती कहाँ हुई है उनसे। ब्रजेश जी की पहली किताब जो शिवना प्रकाशन से ही आई थी “चुनाव राजनीति और रिपोर्टिंग, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2013″। इस किताब को पढ़ कर भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता नेता ने टिप्पणी की थी कि इस किताब को कांग्रेसियों को मत पढ़ने देना नहीं तो इसे पढ़ कर वो प्रदेश में अगली बार सरकार बना लेंगे। क्योंकि इस किताब में उनकी सारी ग़लतियों और चूकों के बारे में साफ लिखा है। उन नेता ने हँसते हुए कहा था कि भाजपा को इस किताब को सारी ख़रीद कर इस आउट ऑफ स्टॉक कर देना चाहिए, यह ख़तरनाक किताब है। मगर शायद उन नेता जी की बात भाजपा ने नहीं सुनी और वह किताब कांग्रसियों ने पढ़ ली तथा अगले चुनाव में प्रदेश में सरकार बना ली। बना ली क्योंकि इतना तो ब्रजेश जी ने पिछली किताब में बता दिया था, मगर बनाने के बाद बचाना कैसे है यह नहीं बताया था। इसलिए सरकार गिर गई। अब बचाने की बात भी ब्रजेश जी ने बता दी है। कैसे सरकार बनाई जाती है उसके लिए “चुनाव राजनीति और रिपोर्टिंग, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2013” तथा कैसे सरकार बचाई/गिराई जाती है, उसके लिए “वो सत्रह दिन”।
यह किताब आते ही लगातार बेस्ट सेलर में रही और आज भी है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए किसी उपहार से कम नहीं है यह पुस्तक। कल सरकार गिरने और बनने का दिन है, कल इस पुस्तक का महत्त्व और बढ़ जाता है। भाई ब्रजेश को बहुत-बहुत बधाई इस अनूठी किताब केे लिए।