वसंत एक स्मृति है- आपके शिवना प्रकाशन के सोलह बरस
यह तस्वीर सोलह साल पुरानी है। वर्ष 2005 की वसंत पंचमी की। उस साल वसंत पंचमी 12 फरवरी को थी। इस तस्वीर में जो पीछे चौखाने वाला कोट पहन कर खड़े हैं, स्वर्गीय मोहन राय, उनकी ही ज़िद से इस दिन शुरूआत हुई थी शिवना प्रकाशन की। उनके ही पहले गीत संग्रह ‘गुलमोहर के तले’ के प्रकाशन के साथ शिवना प्रकाशन ने अपनी आमद दर्ज की थी। लेकिन बस दो ही साल बाद मोहन राय जी इसी फरवरी के महीने में चले गए। मैं प्रकाशन को लेकर अनिच्छुक था, लेकिन उन्होंने ही बहुत ज़िद की थी कि बस दो साल बाद मेरा रिटायरमेंट हो रहा है, फिर मैं पूरा समय दूँगा प्रकाशन को। मगर वे रिटायरमेंट से पहले ही चले गए। इस तस्वीर में नज़र आ रहे चार लोग, जो शिवना के आधार स्तंभ थे, वे एक-एक कर चले गए। बाएँ नज़र आ रहे श्री नारायण कासट, श्री अम्बादत्त भारतीय और मेरे बाएँ खड़े श्री रमेश हठीला तथा श्री मोहन राय, यह चार ही शिवना के आधार स्तंभ हुआ करते थे। एक-एक कर यह चारों चले गए। बीच में डॉ. रामप्यारी धुर्वे हैं, जो उस समय स्थानीय शासकीय कॉलेज की प्राचार्य थीं, अब सेवानिवृत हो चुकी हैं। तब वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजन के साथ शिवना प्रकाशन का शुभारंभ हुआ था तथा पहली पुस्तक ‘गुलमोहर के तले’ का विमोचन किया गया था। नारायण कासट जी बहुत ढूँढ़ के पीली गुलाल लाए थे सबको लगाने के लिए। आज पीछे मुड़कर देखता हूँ तो लगता है क्या था मोहन राय जी के मन में जो उन्होंने ज़िद कर के इस प्रकाशन को शुरू करवाया। उससे पहले हमारी एक संस्था थी ‘शिवना’ नाम की, जो साहित्यिक आयोजन करती थी शहर में। इस संस्था की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसका कोई अध्यक्ष, सचिव, संरक्षक, संचालक नहीं हुआ करता था, उसके बाद भी साल भर में दस-पन्द्रह साहित्यिक आयोजन ‘शिवना’ के बेनर तले होते थे।पीटीआई के संवाददाता तथा वरिष्ठ पत्रकार श्री अम्बादत्त भारतीय हमारे साथ हमेशा खड़े रहते थे। रमेश हठीला जी को कार्यक्रम के नाम से ही ऐसा उत्साह चढ़ता था कि फिर सारा काम वे अपने सिर पर ले लेते थे। श्री नारायण कासट का गरिमामय तथा हिन्दी-उर्दू मिश्रित संचालन मंत्रमुग्ध कर देता था। और मोहन राय जी…. वे चुपचाप से कुछ पैसे जेब में रख जाते थे, ‘रख लो, कार्यक्रम में ख़र्च तो होगा ही।’ अब तो केवल यादें की बची रह गई हैं।
आप सभी को वसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ। ख़ूब लिखते रहें, अपनी लेखनी से जादू जगाते रहें।