समय पत्रिका से साभार )
बहुत कम किताबें ऐसी होती हैं जो पढ़कर खत्म करने के बाद भी आपका पीछा करती हैं। ‘द लास्ट गर्ल’ ऐसी ही किताब है जो नादिया मुराद के जीवन की कहानी है। आप पूछेंगे, नादिया मुराद कौन, तो याद दिलाने पर याद आ जाये कि 2018 में नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली यजीदी लड़की जो आतंकी संगठन आईएसआईएस के चंगुल से बच कर भागी और उनकी आतंक की कहानी पूरी दुनिया को बिना डरे सुनायी। वही आईएसआईएस जो अपने दुश्मनों के सिर वीडियो कैमरों के सामने रेत कर आतंक फैलाते थे और महिला और लड़कियों को गुलाम बनाकर यौन गुलामी ‘सबाया’ करवाते थे। आईएसआईएस ने उत्तरी इराक के जिन इलाकों में 2014 में कब्जा कर नरसंहार किया उन्हीं में से एक गांव नादिया का भी था। जहां यजीदी समुदाय के लोग अपनी गरीब ज़िंदगी में खुशहाली के साथ रहते थे। इन यजीदियों के पास अपने देवता की धार्मिक किताब नहीं है ये प्रकृति प्रेमी है इसलिये इस इलाके में रहने वाले कट्टर मुस्लिम समुदाय के लोग इनको नास्तिक मानते हैं और मन ही मन में दुश्मनी पाल कर इस समुदाय के लोगों को खत्म करना चाहते हैं।
इराक में सद्दाम हुसैन के खात्मे के बाद जो राजनीतिक अस्थिरता इस देश में आयी उसने कैसी तबाही और अराजकता इस भारी गर्मी वाले इलाके में फैलायी है, इस किताब में उसका भी जमीनी वर्णन है। उत्तरी इराक के सिंजर जिले के कोचो गांव में अपने भरे परिवार के साथ रहती थी नादिया। और एक दिन उसके गांव में आईएसआईएस के आतंकियों ने अचानक कब्जा कर लिया। गांव के कुछ लोग पास के ऊँचे पहाड़ पर जान बचाने के लिये चढ़ गये मगर जो बचे उनमें से महिलाओं और लड़कियों को स्कूल में बंदी बना लिया और करीब पांच सौ पुरूषों और दस साल से बड़े लड़कों को पहले से बने गड्ढे में उतार कर गोलियों से भून डाला। इस नरसंहार में नादिया के छह भाई और अनेक संबंधी मारे गये। इसके बाद शुरू होता है नादिया की जिंदगी का दर्दनाक पन्ना जिसे पढ़ कर और सुन कर रूह कांप जाती है।
कोचो गांव की लड़कियों और महिलाओं को बसों में भरकर आईएसआईएस आतंकी अपने कब्जे वाले इलाके मोसुल में ले जाते हैं। लड़कियों और महिलाओं पर अत्याचार का सिलसिला बस में बैठने से ही शुरू हो जाता है जो विरोध या प्रतिरोध करने पर और बढ़ता ही है। इसके बाद इन सबको सबाया बनाया जाता है यानी आईएसआईएस के आतंकियों की यौन भूख शांत करने के लिये गुलाम औरतें जिनको कोई भी आतंकी एक दूसरे को बेच सकता है। कितने भी दिन अपने साथ रख सकता है और कैसे भी जुल्म ढा सकता है। आईएसआईएस की गंदी विचारधारा के मुताबिक यजीदी बाकी के ईसाई शिया और सुन्नी संप्रदाय से अलग हैं इसलिये इनको धरती से खत्म करना और इनकी औरतों को प्रार्थना कराकर उनका धर्म बदलकर उनसे बलात्कार करना गलत नहीं है। यौन गुलाम बनायी गयीं ये औरतें आतंकियों के लिये अपने फौज में भर्ती होने वाले युवाओं को लुभाने का एक तरीका भी है। जिससे ज्यादा से ज्यादा नौजवान उनसे जुड़ें जिसके बदले में उनको भरे बाजार में और कभी-कभी तो फेसबुक के पेज पर दस से बीस डालर में बिकने वाली सुंदर महिला यौन गुलाम मिलें। जिसे वो अपनी मर्जी से रखकर ऐश करने और कभी-कभी तो मार डालने तक के लिये स्वतंत्र थे।
नादिया के साथ भी कई दिनों तक यही कहानी दोहरायी जाती रही। एक आतंकी से दूसरे आतंकी के पास उसे बेचा जाता रहा। लगातार बलात्कार और अत्याचार होते रहने के बाद जब नादिया ने एक बार उन जालिमों के चंगुल से बचकर भागना चाहा तो उसे पकड़ लिया गया और फिर उसे बेइंतहा ऐसे जुल्म झेलने पड़े जिनके बारे में पढ़कर रूह कांप जाती है।
नादिया ने अपनी कहानी के साथ साथ उसे मिलने वाली दूसरी यौन गुलामों की दास्तां भी सुनायी है। सभी के दुख दर्द एक से बढ़कर एक थे। सभी धर्म के नाम पर आतंक फैलाने वाले इस अत्याचारी संगठनों की गुलाम बन कर ज़िंदगी काट रहीं थीं। जिनकी ज़िंदगी में सिवाय बलात्कार के और कुछ नहीं बचा था। मगर आईएसआईएस के अत्याचार की कहानी नादिया को जमाने को सुनानी थी तो वो एक दिन दोबारा भागती है आतंक के अड्डे से। मगर ये आतंकियों के राज्य से बाहर निकलना आसान नहीं था। कदम-कदम पर चौकसी और सख्ती के बीच कैसे नादिया बाहर आती है ये रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी है। जिसे पन्ने दर पन्ने सांस रोक कर पढ़ना पड़ता है। ये किताब पढ़ते-पढ़ते कई बार दिल की धड़कन बढ़ जाती है ये अनुवाद का कमाल है जो आशुतोष गर्ग ने किया है। ऐसा लगता है कि हम आईएसआईएस के इलाके में ही घूम रहे हैं और कभी भी नादिया के साथ हमारा सर भी कलम कर दिया जायेगा।
नादिया ने बाहर आकर यजीदियों के संघर्ष और उन पर होने वाले अत्याचारों से दुनिया के अवगत कराया है। उसका अपनी कौम के साथियों के लिये संघर्ष जारी है। नादिया को नोबेल शांति पुरस्कार के अलावा मानवाधिकार संबंधी सारे अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले हैं।
~ब्रजेश राजपूत.
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं.)
द लास्ट गर्ल
लेखक : नादिया मुराद और जेना क्राजेस्की
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
अनुवाद : आशुतोष गर्ग
पृष्ठ : 272
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