संस्मरण
यूं जाना एक भले आदमी का….

बस थोडी देर पहले ही सुभाष नगर विश्राम घाट से लौटा हूं, और अब सोच रहा हूं कि कितना अच्छा होता कि जिस व्यक्ति की देह को अग्नि में समर्पित कर लौटे हैं उसकी यादें भी उसी तरह धुआं बनकर उड कर अनंत में समां जातीं तो दिल दिमाग में बैचेनी तो नहीं होती। फिर शायद मैं ये सवाल भी नहीं उठाता कि भगवान को अपने पास भले लोगों को बुलाने की क्यों इतनी जल्दी होती है। क्या वो जानते नहीं कि भले लोग तो दुनिया में वैसे भी कम हैं और रोमी जी जैसा भला आदमी तो मैंने अपनी अब तक की जिंदगी में नहीं देखा, ये बात मैं बिना किसी भावुकता के कह रहा हूं।
हमारे रोमी जी यानि तरंग इलेक्टानिक्स के तजिंदर सलूजा। मझोला कद, भारी सा सरदारों वाला शरीर, खुली बिखरी हुयी दाढी, बेपरवाही से बांधा हुआ पग्गड और चेहरे पर हर वक्त रहने वाली सदाबहार मुस्कान जिसमें हर किसी को अपना बना लेने की चाहत दिखती है। मैंने उनको पहली बार छह अक्टूबर 2009 को देखा था न्यू मार्केट के इंडियन होटल में उडन परी पीटी उषा के कमरे में गुमसुम बैठे हुये। उस दिन उषा जी भोपाल आयीं थी और उनके रहने का ठीक ठाक इंतजाम नहीं होने से वो दुखी थीं। टीवी चैनल पर उनके आंसू देख न्यू मुर्केट की अपनी दुकान छोड उन तक पहले पहुंचने वाले पहले शख्स रोमी जी ही थे जो उनके किसी दूसरे होटल या अपने घर चलने का आग्रह कर रहे थे। उसी दरम्यान हम पहुंचे और बाद में पता चला कि ये रोमी सलूजा हैं जो उस रात उषा जी को जहांनुमा तक छोडने के बाद ही घर गये।
इस खबर के बाद तो मेरी रोमी जी से गाहे बगाहे मेल मुलाकात होती रही। बजट के मौकों पर उनकी दुकान के इलेक्टानिक्स के विजुअल्स और बाइट लेने के दरम्यान ही पता चला कि रोमी जी खेल के शौकीन तो हैं ही पढने लिखने में भी उस्ताद हैं। सुबह सवेरे में रविवार को छपने वाली ग्राउंड रिपोर्ट वो बिला नागा पढते और मौका मिलता तो फोन कर चर्चा भी करते। उन दिनों मैंने एक रिपोर्ट पीटी उषा पर लिखी तो उनका भी जिक्र कर दिया तो वो बेहद सकुचाये और कहा इतना तो कुछ किया नहीं मैंने। मेरी किताब आफ द स्क्रीन में ये किस्सा छपा है।
धीरे धीरे रोमी जी खुले तो ये भी पता चला कि उनके विशाल शरीर में बेजुबान जानवरों के लिये भी नन्हा सा दिल धडकता है। उत्तराखंड पुलिस के घोडे शक्तिमान को जब एक प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर बीजेपी के विधायक के डंडे से पैर में चोट आयी थी तो रोमी जी उसके लिये बहुत दुखी हुये। मुझसे अक्सर उस घायल घोडे की बात करते और कहते कि आदमी असहाय जानवर को क्यों इतनी बेदर्दी से मारता है। शक्तिमान के दम तोडने पर रोमी जी ने सिख होने पर भी अंडा खाना छोड दिया मैंने पूछा क्यों तो कहा कि उस जानवर की मौत पर किसी ना किसी इंसान को तो प्रायश्चित तो करना ही चाहिये।
रोमी जी की बिटटन मार्केट में दुकान के दरवाजे पर ही अनेक गली के कुत्ते बैठे मिल जाते। उनमें से कोई बीमार होता था, तो किसी को जानवरों ने घायल कर दिया होता था तो किसी को गाडी ने कुचल दिया होता था और इन सबका सहारा बनते थे हमारे रोमी जी जो जगह जगह से इनको यहां लाते उनका इलाज कराते खाने पीने की व्यवस्था करते। कोरोना के दरम्यान जब लाकडाउन लगा तो एक दिन मुझे शाम को रोमी जी अपनी पत्नी के साथ कार में जाते दिखे। मुझे देख कार रोकी तो मैंने पूछा आप दोनों लाकडाउन में क्यों बाहर तफरीह कर रहे हैं तो पता चला कि सलूजा दंपति लाकडाउन में पास बनवाकर जानवरों को खाना देने रोज निकलते हैं। कार में पीछे बिस्कुट, खिचडी, भाजियां भरी हुयी थीं। कुत्तों से लेकर गायों तक वो रोज खाना देने निकलते थे।
विनम्रता और सौम्यता में रोमी जी का कोई सानी ना था। जिसे भी उनकी दुकान पर भेजा वो उनका मुरीद बनकर लौटता था। दिल जीतने की कला कोई उनसे सीखे। दुकान पर सामान लेने वालों को वो कभी पूरे पैसे देने पर जोर नहीं देते थे। हर बार यही कहते आ जायेंगे पैसों का क्या है। रोमी जी के परिचित मोहन शर्मा कभी उनके सामने ही हंस कर कहते थे कि भगवान ने रोमी जी के बनाने के बाद वो सांचा ही तोड दिया जिससे उनके जैसे लोग दूसरे हुये ही नहीं। वो उधार लेकर दोस्तों की मदद करने वालों में से थे। तभी तो भदभदा के विश्राम घाट पर उनके दोस्तों और चाहने वालों की भारी भीड लगी थी उनको अंतिम विदाई देने।
भले आदमी के बारे में आपने कहानियों में पढा होगा मगर रोमी जी से मिलकर आप जरूर कहते कि मैंने भले आदमी से मिल भी लिया। ऐसे भले आदमी को भगवान ने 27 जनवरी को भोपाल होशंगाबाद के बीच हुयी सडक दुर्घटना में हम सब से छीन लिया। विनम्र श्रद्वांजलि
ब्रजेश राजपूत,,
एबीपी नेटवर्क, भोपाल

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